शरत चंद्र का कहानी-संकलन 'अकेली' स्कूल के दिनों में पढ़ा था। ये वही अकेली लड़की है जिसकी कहानी उस संकलन में छपी थी और रंगीन चित्र, आवरण पर। मुझे बहुत पसंद आई, मैंने पेंसिल से उतार लिया। वो पेंसिल जिससे स्कूल के काम करती थी। सन 1982 में! तब लिखने-पढ़ने और लकीरें खींचने का जूनून सर पर सवार था। जब शरत चंद्र को पढ़ना शुरू किया तो उपन्यास समझने की उम्र नहीं थी, शरत चंद्र के उपन्यास की तो बिलकुल भी नहीं। लेकिन पढ़ती थी, क्योंकि जितना समझ आता था वही बहुत अनूठा था। बंगाल की मिट्टी की खुशबू में सराबोर उपन्यास मँझली बहन, परिणीता, बड़ी दीदी, शुभदा, बिराज बहू (बिराजबौ), गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास एक एक-कर के पढ़ गई। शरत चंद्र कथा शिल्पी थे। कमाल की लेखनी थी - 100 साल से भी पुरानी उस जीवन शैली का चित्रण इतनी खूबसूरती किया था कि पूरा बंगाल मेरी आँखों में उतर आया था। पहनावा, आचार-विचार, भोजन शैली, रिश्ते-नाते, लोक व्यवहार, रीतियाँ-कुरीतियां, शोषण-अत्याचार, उत्सव-त्योहार कुछ नहीं छूटा उनकी लेखनी से। अपने कथानक के तानों-बानों में वह सबकुछ बड़ी खूबसूरती से बुन देते थे। पंडित मोशाय, दर्...