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रूद्र वीणा उत्सव: अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम की बारादरी में गुणीजनों का संगीतमय समागम















गुलाबी नगरी जयपुर में तीन दिवसीय रूद्र वीणा उत्सव का आयोजन अपनेआप में अनूठा था। इस संगीतमय उत्सव का साक्षी बना ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम। रूद्र वीणा उत्सव ने इतिहास के उस कालखंड को जीवंत कर दिया जब महलों में शास्त्रीय संगीत गुंजायमान थे।
"भारतीय-अरबी शैली" में बनाई गई अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम की इमारत पाषाण शिल्प की अनुपम कृति है। नक्काशीदार खम्भे, घुमावदार मेहराबें, बारीक़ काष्ठकला के खूबसूरत दरवाजे, आराइश की हुई दीवारें, उनपर बूटीदार नक्काशी और बारादरी में गुणीजनों का संगीतमय समागम! ऐसा नयनाभिराम दृश्य संगीत प्रेमियों को आज विरले ही देखने को मिलता है। प्रातःकाल हो या गोधूलि बेला संगीत साधक और सुधि श्रोता दोनों अपने-अपने आसनों पर विराजमान रहते। यहाँ संगीत-कलाकारों से सजी अल्बर्ट हाल की दीर्घाएं वीणा के सुर से मानो झंकृत हो उठीं। राजस्थान का सबसे पुराना और भव्य संग्रहालय रूद्र वीणा उत्सव के दौरान संगीत रसिकों की चहल-पहल से आबाद रहा। 
पुरातत्व एवं संग्रहालय तथा कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्तुत और उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी एवं द डागर आर्काइव के संयुक्त तत्वावधान में सजा यह संगीत समागम संभवतः देश का पहला ऐसा उत्सव था जहाँ रूद्र वीणाओं की प्रदर्शनी, वादन और संवाद तीनों का आयोजन किया गया।

तीन दिन और छः सत्र
रूद्र वीणा उत्सव को छः सत्रों में आयोजित किया गया था जिनमें सायंकालीन सत्रों में मुख्य कलाकारों और गुणीजनों ने वीणा वादन की प्रस्तुति दी जबकि प्रातःकालीन सत्रों में विद्यार्थियों का वीणा वादन, संगीत चर्चा तथा गुणीजन सभाएं आयोजित हुईं। कार्यक्रम का आगाज़ आलाप से हुआ।
उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी की अध्यक्ष एवं आयोज शबाना डागर के अनुसार उत्सव का मूल उद्देश्य रूद्र वीणा का विकास, विस्तार और प्रसार है वीणा उत्सव का आयोजन पहली बार सन 2010 में जवाहर कला केंद्र में किया गया था लेकिन उसके बाद इसे नियमित नहीं किया जा सका। उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी ने इसकी पुनः शुरुआत की है। आज भारत में इसके वादक बहुत कम हैं इसलिए रूद्र वीणा को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है। रूद्र वीणा एक जीवंत वाद्य है और रुद्र वीणा वादन उतनी ही जीवंत कला है शबाना डागर भारत के विख्यात डागर ध्रुपद घराना की 20वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
कई कारणों से रुद्र वीणा उत्सव का विशेष महत्त्व है। पहला यह कि वीणा को सारे तंतु वाद्यों का जनक माना जाता है। यह एक पूर्णतः भारतीय वाद्य है। दूसरा यह कि भारत में इस वाद्य के वादक बहुत कम रह गए हैं। रुद्र वीणा का निर्माण भी कठिन है। निर्माण सामग्री जैसे; हाथीदांत आदि पर प्रतिबन्ध है। इसलिए इसकी कीमत काफी ज्यादा है। उचित आर्थिक मदद न होना एक और बाधा है। ऐसी परिस्थितियों में रूद्र वीणा उत्सव का आयोजन कर भारत के सारे प्रमुख वीणा वादकों, छात्रों और निर्माताओं को एक स्थान पर लाना और एक मंच प्रदान करना एक सराहनीय कार्य है।
उत्सव में हुई गुणीजन सभा में वीणा, वीणा वादकों और निर्माताओं के भविष्य के प्रति चिंताओं के स्वर भी उभरे। कालचक्र में ऐसी चिंताएं स्वाभाविक हैं किन्तु देश भर से आए हुए इतने वीणा वादकों, छात्रों, वीणा निर्माताओं और श्रोताओं की उपस्थिति इस बात का संकेत देती है कि इस कला को प्रश्रय मिले तो खूब फलीभूत होगी। वीणा के विस्तार, विकास और प्रसार के लिए शबाना डागर की प्रतिबद्धता बेहद सराहनीय है।

भारतीय संगीत और विदेशी कलाकार
उत्सव की शुरुआत विदेशी शास्त्रीय गायक जेरोम कोर्मिएर से हुई। उन्होंने मंगलाचरण के अंतर्गत ध्रुपद आलाप गायन की प्रस्तुत किया। इसके बाद दो विद्यार्थियों, मुरली मोहन और हेकेल म्लूका ने वीणा वादन प्रस्तुत किया। तीसरे दिन की प्रातःकालीन सभा में सुवीर मिश्रा की शिष्या अर्पिता शर्मा ने गुजरी तोड़ी में आलाप, जोड़ और झाला प्रस्तुत किया जिसने समां बांध दिया।
पहले दिन के संध्याकालीन सत्र का आरम्भ शारदा मुश्ती के सुमधुर वीणा वादन से हुआ उन्होंने राग देश में आलाप, जोड़, झाला और एक बंदिश प्रस्तुत किए। यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत में केवल दो ही वीणा वादिकाएं हैं शारदा मुश्ती उनमें  एक हैं दूसरी वीणा वादिका विदूषी ज्योति हेगड़े विदेश यात्रा के कारण इस उत्सव में शामिल नहीं हो पाईं
सत्र के दूसरे भाग में उस्ताद ज़ाहिद फरीदी ने राग भैरवी में आलाप जोड़ और झाला प्रस्तुत किए उनकी वादन परंपरा में खंडार वाणी का प्रयोग होता है उस्ताद ज़ाहिद फरीदी की दमदार प्रस्तुति ने श्रोताओं को मोह लिया वह विख्यात इंदौर बीनकार घराना का प्रतिनिधित्व करते हैं
दूसरे दिन के सांध्यकालीन सत्र का आरम्भ श्री कार्स्टन विके के मनमोहक वीणा वादन से हुआ भारतीय संस्कृति से अभिभूत कार्स्टन विके ने राग बिहाग में आलाप, जोड़ और झाला तथा राग सोहिनी में एक बंदिश प्रस्तुत की कार्स्टन जर्मन निवासी हैं और 1990 के दशक में भारत आये उन्होंने महान वीणावादक उस्ताद (दिवंगत) असद अली खान से वीणा वादन की शिक्षा पाई उनके गायन में जोड़ और झाला ने उनके गुरु की याद दिला दी। सत्र के दूसरे भाग में पं. सुवीर मिश्रा ने राग पूर्वी कल्याण में डागर बानी ध्रुपद स्टाइल के आलाप और बाद में राग बागेश्री मालकौंस में बंदिश प्रस्तुत की उन्होंने उस्ताद जिया फरीदुद्दीन खान से शिक्षा प्राप्त की है। दिलचस्प बात यह है कि पं. सुवीर मिश्रा कस्टम्स विभाग के उच्च अधिकारी हैं और मुंबई में वीणा वादन की शिक्षा भी देते हैं
तीसरे दिन के सांध्य सत्र का आरम्भ वयोवृद्ध वीणा वादक पं. राजशेखर व्यास के विलंबित आलाप, जोड़, झाला और एक बंदिश से हुआ जो राग गांगेय भूशिणी में निबद्ध थे 80 से अधिक वय में ऐसी दमदार प्रस्तुति किसी चमत्कार से कम नहीं थी इसके पश्चात उस्ताद बहाउद्दीन डागर ने राग यमन में वीणा वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया इस प्रस्तुति में उनके शिष्य वेंकट कृष्णन ने भी संगति की वह पिछले पांच वर्षों से उस्ताद बहाउद्दीन डागर से वीणा वादन सीख रहे हैं इस उत्सव में पखावज पर उत्कृष्ट संगतकार थे जयपुर के डा. पं. प्रवीण आर्य और पं. सत्यभूषण पाठक, दिल्ली के सलमान वारसी और मुंबई के सुखद मुंडे तानपुरे पर जयपुर के वरुण जैन संगत ने संगत किया।

परिसर में वृक्षारोपण भी
रूद्र वीणा उत्सव में वीणा वादकों ने अलबर्ट हॉल म्यूज़ियम परिसर में वृक्षारोपण भी किया। ये वृक्ष सदियों तक इस रूद्रवीणा उत्सव के साक्षी रहेंगे। इस पूरे उत्सव में अल्बर्ट हॉलम्यूज़ियम प्रबंधन और म्यूज़ियम इसके सुपरिटेंडेंट राकेश छोलक की विशेष भूमिका रही।
संगीत का यह सत्संग हर कलाकार के लिए यादगार अनुभव रहा और श्रोताओं के लिए संगीत-रस में डूब जाने का अवसर। रूद्र वीणा उत्सव को अगर सरकार व अन्य संस्थाओं से पूरा सहयोग मिले तो यह अंतर्राष्ट्रीय रूद्र वीणा उत्सव बन सकता है।
- अमृता मौर्य

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