पैरालिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी कम से कम 15 मेडल लाने वाले हैं। इससे भी अधिक लाएं तो आश्चर्य नहीं। टोक्यो पैरालिम्पिक में 54 भारतीय पैरा एथलीट भाग ले रहे हैं। ये सभी कमाल के हैं। 2016 में रियो में हुए पैरालिम्पिक में सिर्फ 19 दिव्यांग खिलाड़ी गए थे जो हमारे लिए 4 मेडल लेकर आये थे। वहीं सामान्य खिलाड़ियों की 117 की ऐतिहासिक संख्या रियो से सिर्फ दो मेडल लाने में कामयाब हो पाई थी। टोक्यो ओलम्पिक 2020 में प्रदर्शन करने वाले 127 खिलाड़ी 7 मेडल लेकर आये हैं। दूसरी तरफ पैरा एथलीट इनके आधे से भी कम हैं लेकिन जीत के मामले में उनके दोगुने से ज्यादा मेडल लाने में सक्षम दिख रहे हैं। 25 साल पहले जब मैं दिव्यांग खिलाड़ियों से जुड़ी तब इनकी छोटी-छोटी समस्याओं से रूबरू हुई। यहाँ तक कि दिव्यांग होने का सर्टिफिकेट भी कुछ खिलाड़ियों को रिश्वत देकर मिला था। ये सर्टिफिकेट अपने जिले के बाहर नहीं बनवा सकते। अस्थि विकलांगता 40 प्रतिशत से अधिक हो तभी वह व्यक्ति विकलांग कहलाता है। इसी तरह दृष्टिहीनता 90 प्रतिशत से अधिक होने पर ही मान्य है। विकलांगता तय करने का अधिकार चिकित्सा अधिकारी के पास होता है। अगर उसने कम अ...
जिसका डर था वही हुआ। जब राज्य सरकारें और केंद्र सरकार श्रमिकों को रगड़ते-घिसते मरते-खपते सड़क नापते देख रही थीं तब तुमने अपनी हेल्पलाइन शुरू कर दी। बेचारे भटकते रहे कि प्रशासन से कोई संपर्क हो जाए, तुम सहायता मांगने वालों को व्यक्तिगत रूप से जवाब देते रहे, सामने जाकर मिलते रहे। तुम और तुम्हारी टीम उनके लिए दिनरात दौड़ती - भागती रही। हज़ारों की संख्या में श्रमिकों को तुमने बसों और हवाई जहाज़ से घर पहुँचाया। वे सुविधापूर्वक पहुँच गए। बहुत अनुग्रहित महसूस कर रहे हैं। तुम्हारी सराहना करते नहीं थक रहे हैं। लेकिन गड़बड़ सारी यहीं हो गई है। आपदा को अवसर में बदलने के लिए कोई और बैठा था, बदलकर कोई और उभरता दिख गया। वैसे गड़बड़ की शुरुआत तो तुमने ही की थी जो ज़रुरत के समय काम आ गए। तुम्हें क्या पड़ी थी? मजदूरों की सहायता की जाए या न की जाए, कब की जाए, किन मजदूरों की सहायता की जाए, किनकी छोड़ दी जाए - ये सब राजनीतिक विषय है, वहां पूरा सोच - विचार हो रहा था। तुम कलाकार हो, बीच में टांग अड़ाने की क्या ज़रुरत थी? एक्टर हो तो अपना काम देखो। तुम्हें कुछ पता है क्या? खर्च के मामले में तुम्हारी दरियादिली दे...